व्यंग्य बाण

बैँक लुट :-

एक बैँक लूट के दौरान लुटेरों के मुखिया ने बैँक मेँ मौजूद लोगोँ को चेतावनी देते हुए कहा
“ये पैसा देश का है और जान आपकी अपनी
सब लोग लेट जाओ तूरंत …. क्विक”
सब लोग लेट गये !
इसे कहते हैँ – ‘Mind Changing Concept’

लुटेरों का एक साथी जो कि MBA किये हुआ था,
उसने कहा कि पैसे गिन लेँ?
मुखिया ने कहा बेवकूफ वो टीवी पर देखना न्यूज में,
इसे कहते हैँ – ‘Experience’

लुटेरे 20 लाख लेकर भाग गए. असिस्टेंट मैनेजर ने कहा – ‘एफ आई आर’ करें?
मैनेजर ने कहा – ’10 लाख निकाल लो और जो हमने 50 लाख का
गबन किया वो भी लूट में जोड़ लो …. काश हर महीने डकैती हो’
इसे कहते हैँ – ‘Opportunity’

टीवी पर न्यूज आई – “बैँक से 80 लाख लूटे”
लुटेरोँ ने कई बार गिने 20 लाख ही थे
उनको समझ में आ गया कि इतनी जोखिम के बाद उनको 20 लाख ही मिले,
जबकि साले मैनेजर ने 60 लाख यूं ही बना लिए
अब इसे कहते हैँ MANAGEMENT!

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भारतीय नर्क :-
एक बार एक भारतीय व्यक्ति मरकर नर्क में पहुँचा, तो वहाँ उसने देखा कि प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी देश के नर्क में जाने की छूट है । उसने सोचा, चलो अमेरिकावासियों के नर्क में जाकर देखें, जब वह वहाँ पहुँचा तो द्वार पर पहरेदार से उसने पूछा – क्यों भाई अमेरिकी नर्क में क्या-क्या होता है ? पहरेदार बोला – कुछ खास नहीं, सबसे पहले आपको एक इलेक्ट्रिक चेयर पर एक घंटा बैठाकर करंट दिया जायेगा, फ़िर एक कीलों के बिस्तर पर आपको एक घंटे लिटाया जायेगा, उसके बाद एक दैत्य आकर आपकी जख्मी पीठ पर पचास कोडे बरसायेगा… बस ! यह सुनकर वह व्यक्ति बहुत घबराया और उसने रूस के नर्क की ओर रुख किया, और वहाँ के पहरेदार से भी वही पूछा, रूस के पहरेदार ने भी लगभग वही वाकया सुनाया जो वह अमेरिका के नर्क में सुनकर आया था । फ़िर वह व्यक्ति एक-एक करके सभी देशों के नर्कों के दरवाजे जाकर आया, सभी जगह उसे एक से बढकर एक भयानक किस्से सुनने को मिले । अन्त में थक-हार कर जब वह एक जगह पहुँचा, देखा तो दरवाजे पर लिखा था “भारतीय नर्क” और उस दरवाजे के बाहर उस नर्क में जाने के लिये लम्बी लाईन लगी थी, लोग भारतीय नर्क में जाने को उतावले हो रहे थे, उसने सोचा कि जरूर यहाँ सजा कम मिलती होगी… तत्काल उसने पहरेदार से पूछा कि यहाँ के नर्क में सजा की क्या व्यवस्था है ? पहरेदार ने कहा – कुछ खास नहीं…सबसे पहले आपको एक इलेक्ट्रिक चेयर पर एक घंटा बैठाकर करंट दिया जायेगा, फ़िर एक कीलों के बिस्तर पर आपको एक घंटे लिटाया जायेगा, उसके बाद एक दैत्य आकर आपकी जख्मी पीठ पर पचास कोडे बरसायेगा… बस ! चकराये हुए व्यक्ति ने उससे पूछा – यही सब तो बाकी देशों के नर्क में भी हो रहा है, फ़िर यहाँ इतनी भीड क्यों है ? पहरेदार बोला – इलेक्ट्रिक चेयर तो वही है, लेकिन बिजली नहीं है, कीलों वाले बिस्तर में से कीलें कोई निकाल ले गया है, और कोडे़ मारने वाला दैत्य सरकारी कर्मचारी है, आता है, दस्तखत करता है और चाय-नाश्ता करने चला जाता है…और कभी गलती से जल्दी वापस आ भी गया तो एक-दो कोडे़ मारता है और पचास लिख देता है…चलो आ जाओ अन्दर !!!

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उल्लुओं के हक़ में फैसला :-

एक बार एक हंस और हंसिनी हरिद्वार के सुरम्य
वातावरण से भटकते हुए उजड़े, वीरान और
रेगिस्तान के इलाके में आ गये ! हंसिनी ने हंस
को कहा कि ये किस उजड़े इलाके में आ गये हैं ?
यहाँ न तो जल है, न जंगल और न ही ठंडी हवाएं
हैं ! यहाँ तो हमारा जीना मुश्किल हो जायेगा !
भटकते २ शाम हो गयी तो हंस ने हंसिनी से
कहा कि किसी तरह आज कि रात बिता लो, सुबह
हम लोग हरिद्वार लौट चलेंगे ! रात हुई तो जिस
पेड़ के नीचे हंस और हंसिनी रुके थे उस पर एक
उल्लू बैठा था। वह जोर २ से चिल्लाने लगा।
हंसिनी ने हंस से कहा, अरे यहाँ तो रात में
सो भी नहीं सकते। ये उल्लू चिल्ला रहा है।
हंस ने फिर हंसिनी को समझाया कि किसी तरह
रात काट लो, मुझे अब समझ में आ गया है कि ये
इलाका वीरान क्यूँ है ? ऐसे उल्लू जिस इलाके में
रहेंगे वो तो वीरान और उजड़ा रहेगा ही।
… पेड़ पर बैठा उल्लू दोनों कि बात सुन रहा था।
सुबह हुई, उल्लू नीचे आया और उसने
कहा कि हंस भाई मेरी वजह से आपको रात में
तकलीफ हुई, मुझे माफ़ कर दो। हंस ने कहा, कोई
बात नही भैया, आपका धन्यवाद !
यह कहकर जैसे ही हंस अपनी हंसिनी को लेकर
आगे बढ़ा, पीछे से उल्लू चिल्लाया, अरे हंस
मेरी पत्नी को लेकर कहाँ जा रहे हो। हंस चौंका,
उसने कहा, आपकी पत्नी? अरे भाई, यह
हंसिनी है, मेरी पत्नी है, मेरे साथ आई थी, मेरे
साथ जा रही है !
उल्लू ने कहा, खामोश रहो, ये मेरी पत्नी है।
दोनों के बीच विवाद बढ़ गया। पूरे इलाके के लोग
इक्कठा हो गये। कई गावों की जनता बैठी।
पंचायत बुलाई गयी। पंच लोग भी आ गये ! बोले,
भाई किस बात का विवाद है ?
लोगों ने बताया कि उल्लू कह रहा है
कि हंसिनी उसकी पत्नी है और हंस कह रहा है
कि हंसिनी उसकी पत्नी है ! लम्बी बैठक और
पंचायत के बाद पञ्च लोग किनारे हो गये और
कहा कि भाई बात तो यह सही है कि हंसिनी हंस
की ही पत्नी है, लेकिन ये हंस और
हंसिनी तो अभी थोड़ी देर में इस गाँव से चले
जायेंगे।
हमारे बीच में तो उल्लू को ही रहना है। इसलिए
फैसला उल्लू के ही हक़ में ही सुनाना है ! फिर
पंचों ने अपना फैसला सुनाया और कहा कि सारे
तथ्यों और सबूतों कि जांच करने के बाद यह
पंचायत इस नतीजे पर पहुंची है कि हंसिनी उल्लू
की पत्नी है और हंस को तत्काल गाँव छोड़ने
का हुक्म दिया जाता है ! यह सुनते ही हंस हैरान
हो गया और रोने, चीखने और चिल्लाने
लगा कि पंचायत ने गलत फैसला सुनाया।
उल्लू ने मेरी पत्नी ले ली ! रोते- चीखते जब
वहआगे बढ़ने लगा तो उल्लू ने आवाज लगाई –
ऐ मित्र हंस, रुको ! हंस ने रोते हुए
कहा कि भैया, अब क्या करोगे ? पत्नी तो तुमने
ले ही ली, अब जान भी लोगे ? उल्लू ने कहा,
नहीं मित्र, ये हंसिनी आपकी पत्नी थी, है और
रहेगी !
लेकिन कल रात जब मैं चिल्ला रहा था तो आपने
अपनी पत्नी से कहा था कि यह
इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है
क्योंकि यहाँ उल्लू रहता है !
मित्र, ये इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए
नहीं है कि यहाँ उल्लू रहता है ।
यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है
क्योंकि यहाँ पर ऐसे पञ्च रहते हैं जो उल्लुओं के
हक़ में फैसला सुनाते हैं !
शायद ६५ साल कि आजादी के बाद भी हमारे देश
की दुर्दशा का मूल कारण यही है कि हमने
हमेशा अपना फैसला उल्लुओं के ही पक्ष में
सुनाया है।
इस देश क़ी बदहाली और दुर्दशा के लिए कहीं न
कहीं हम भी जिम्मेदार हैं

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प्रजातंत्र की गंगा में डुबकी :-

एक सज्जन बनारस पहुँचे। स्टेशन पर उतरे ही थे कि एक लड़का दौड़ता आया
‘‘मामाजी ! मामाजी !’’—लड़के ने लपक कर चरण छूए।
वे पहचाने नहीं। बोले—‘‘तुम कौन ?’’
‘‘मैं मुन्ना। आप पहचाने नहीं मुझे?’’ ‘
‘मुन्ना ?’’ वे सोचने लगे।
‘‘हाँ, मुन्ना। भूल गये आप मामाजी !
खैर, कोई बात नहीं, इतने साल भी तो हो गये।’’ ‘मैं आजकल यहीं हूँ।’’
‘‘अच्छा।’’
‘‘हां।’’ मामाजी अपने भानजे के साथ बनारस घूमने लगे। चलो, कोई साथ तो मिला। कभी इस मंदिर, कभी उस मंदिर। फिर पहुँचे गंगाघाट। बोले कि सोचा रहा हूँ , नहा लूँ ‘‘जरूर नहाइए मामाजी ! बनारस आये हैं और नहाएंगे नहीं, यह कैसे हो सकता है?’’ मामाजी ने गंगा में डुबकी लगाई। हर-हर गंगे। बाहर निकले तो सामान गायब, कपड़े गायब !
लड़का…मुन्ना भी गायब !
‘‘मुन्ना…ए मुन्ना !’’
मगर मुन्ना वहां हो तो मिले। वे तौलिया लपेट कर खड़े हैं।
‘‘क्यों भाई साहब, आपने मुन्ना को देखा है ?’’ ‘‘कौन मुन्ना ?’’
‘‘वही जिसके हम मामा हैं।’’
लोग बोले ‘‘मैं समझा नहीं।’’
‘‘अरे, हम जिसके मामा हैं वो मुन्ना।’’
वे तौलिया लपेटे यहां से वहां दौड़ते रहे। मुन्ना नहीं मिला।
** ठीक उसी प्रकार ……..
भारतीय नागरिक और भारतीय वोटर के नाते हमारी यही स्थिति है मित्रो !
चुनाव के मौसम में कोई आता है और हमारे चरणों में गिर जाता है। मुझे नहीं पहचाना मैं चुनाव का उम्मीदवार। होने वाला एम.पी.।
मुझे नहीं पहचाना ……..?
आप प्रजातंत्र की गंगा में डुबकी लगाते हैं।
बाहर निकलने पर आप देखते हैं कि वह शख्स जो कल आपके चरण छूता था, आपका वोट लेकर गायब हो गया।
वोटों की पूरी पेटी लेकर भाग गया।
समस्याओं के घाट पर हम तौलिया लपेटे खड़े हैं।
सबसे पूछ रहे हैं —क्यों साहब, वह कहीं आपको नज़र आया ? अरे वही, जिसके हम वोटर हैं। वही, जिसके हम मामा हैं।
पांच साल इसी तरह तौलिया लपेटे, घाट पर खड़े बीत जाते हैं।…….
“आगामी चुनावी स्टेशन पर …………… ­ ­. भांजे आपका इंतज़ार करेंगे……

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महाभारत अगर आज होती तो..

  • संजय आँखों देखा हाल सुनते हुए विज्ञापन भी प्रसारित करता और अरबपति हो जाता
  • “अंधे का पुत्र अँधा” ट्वीट करने के बाद द्रौपदी पर धरा 66A के तहत मुकदमा चलता
  • अभिमन्यु को ज्ञान की प्राप्ति हो जाती कि चक्रव्यूह से निकलना IRCTC पर टिकट कराने से कईं गुणा आसान है
  • भीष्म पितामह को बाणों की शैया पर लेटे हुए देख मीडिया वाले पूछते “आपको कैसा लग रहा है”
  • आधार कार्ड बनवाने का जब कौरवों का नंबर आता तो बेचारे कार्ड बनाने वालो को मानसिक तनाव की वजह से छुट्टी लेनी पड़ जाती
  • द्रौपदी के चीर-हरण का सीधा प्रसारण किया जाता
  • दुर्योधन कहता कि द्रौपदी का चीरहरण इसलिए किया गया क्योंकि उसने उसको ‘भैया” नहीं कहा
  • बेचारे सौ कौरव सिर्फ 9 सस्ते गैस सिलेंडरो की वजह से भूखे मर जाते
  • युद्ध की हार-जीत पर अरबों रूपये का सट्टा लगा होता
  • चक्रव्यूह से एक दिन पहले सारे न्यूज़ चैनल चक्रव्यूह तोड़ने का तरीका प्रसारित करते
  • तथाकथित कुछ मानवाधिकार कार्यकर्ता “कौरवों को इन्साफ दिलवाओ, पांडवों ने पूरे परिवार का नरसंहार किया” के पोस्टर लेकर इंडिया गेट पर बैठे होते
  • “हस्तिनापुर पर कौन राज़ करेगा ? “नाम से टीवी कार्यक्रम डेली शॉप की तरह हर रोज़ न्यूज़चेनलो पर चलता
  • भीम का ऑफिशियली वोर्नवीटा से कॉन्ट्रैक्ट होता
  • द्रोणाचार्य पर शिक्षा का अधिकार न लागू करने का केस चलता….

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बाबा रामदेव एक डॉक्टर से मिले। काम हो गया तो फीस पूछी। डॉक्टर बोले, यह तो मेरी धर्म के प्रति सेवा है।
अगले दिन डॉक्टर के दफ्तर में फलों की टोकरी और एक धन्यवाद नोट पहुंच गया।
फिर अब्दुल कलाम डॉक्टर के पास आए और वही बात हुई।
डॉक्टर ने कहा – यह तो मेरा साइंस के प्रति फर्ज था।
अगले दिन एक दर्जन किताबें और एक धन्यवाद नोट पहुंच गया।
फिर मनमोहन सिंह जी डॉक्टर से मिले और फीस पूछी।
डॉक्टर ने कहा- आप प्रधानमंत्री हैं। यह तो मेरी देश के लिए सेवा है।
अगले दिन एक दर्जन कांग्रेसी डॉक्टर के पास इलाज कराने पहुंच गए।
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मित्रो ..एक शुभ समाचार आ रहा है ,बहुत जल्दी ही हम चीन से हमारी जमीन खाली करवा लेंगे और कोई बड़ी बात नहीं की चीन के भी एक बड़े भू भाग पर हमारा कब्ज़ा हो जाए .
अभी कुछ देर पूर्व ही भारत सरकार द्वारा इस प्रकार के मामलो के एक ” परम विशेषज्ञ ” की नियुक्ति इस मामले को तुरंत सुलटाने के लिए कर दी गयी है .
” श्री रोबर्ट वढेरा ” की

अब में इस मामले को लेकर पूरी तरह आशावान हूँ|
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एक सज्जन बनारस पहुँचे। स्टेशन पर उतरे ही थे कि एक लड़का दौड़ता आया
‘‘मामाजी ! मामाजी !’’—लड़के ने लपक कर चरण छूए।
वे पहचाने नहीं। बोले—‘‘तुम कौन ?’’
‘‘मैं मुन्ना। आप पहचाने नहीं मुझे?’’ ‘
‘मुन्ना ?’’ वे सोचने लगे।
‘‘हाँ, मुन्ना। भूल गये आप मामाजी !
खैर, कोई बात नहीं, इतने साल भी तो हो गये।’’ ‘मैं आजकल यहीं हूँ।’’
‘‘अच्छा।’’
‘‘हां।’’

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