वृक्षारोपण अपना कर्तव्य

वृक्ष हमारी सृष्टि के सौन्दर्य व उन्नति के प्रतीक

सृष्टि के जीवनकाल में वृक्षों की अहम भूमिका रही है। पेड़-पौधों ने हमारी सृष्टि को सहेजने में जो सरोकार निभाया है, वह किसी भी जीव-जन्तु द्वारा निवर्हन करना अपर्याप्त होगा। पर्यावरण विश्लेषकों ने पेड़ को दानदाता की उपमा से नवाजा है, चंुकि पेड़ों ने सदैव हमें देने का कार्य ही किया है।

वृक्ष अपने जीवन का सृष्टि उत्पन्न अमुल्य रत्न है। क्या आपने पेड़ की अंतरआत्मा की आवाज को सुना है? वह वर्तमान परिस्थितियों में सदैव यह ही कहता सुनाई देगा कि मुझे सृष्टि पर जीने का अधिकार है मेरा विनाश मत करों। मेरी संख्या बढाओं मै आपके जीवन का अहम हिस्सा हूं।

प्रत्येक मनुष्य को अपने जीवनकाल के दौरान ज्यादा से ज्यादा वृक्षारोपण करना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार एक वृक्ष एक पुत्र समान होता है। आप इस सत्य से अंजान होंगे कि प्रत्येक व्यक्ति द्वारा जीवन में फैलने वाले प्रदूषण को खत्म करने के लिए 300 वृक्षों की जरूरत होती है। मानव स्वयं तो वातावरण को दूषित कर रहा है, दूसरी अपनी दैनिक जरूरी वस्तुएं जैसे मोबाईल, वाहन या फिर केमिकल इण्डस्ट्रीज ये सभी अपने पर्यावरण को दूषित कर रहे है। जैसे वाहन का धुंआ, मोबाईल से निकलने वाली रेडीयेश ये सभी पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है। इसलिए इन सभी समस्याओं का हल सिर्फ वृक्षा रोपण में है। हमें ज्यादा से ज्यादा वृक्षा रोपण करना चाहिए क्योकि वृक्षों की कमी से व्यक्ति आर्थिक और शारीरिक दोनों तरह से पिछडता जा रहा है। मानव को वृक्षारोपण को अपना कर्तव्य व दायित्व मानना चाहिए। इससे पर्यावरण असंतुलन की समस्याओं से आने वाले समय में निजात मिल सकती है। सिर्फ 1 व्यक्ति 1 वृक्ष का नारा अपनाकर एक एक वृक्ष लगा ले तो यह राजस्थान तो क्या पूरा देश हरा भरा हो सकता है। दक्षिणी भारत या मध्यप्रदेश की तुलना में राजस्थान का पर्यावरण की दृष्टि आकंलन किया जाए तो इसका स्तर काफी नीचे है।
Felix
पर्यावरण क्षेत्र में एक नन्हे मासूम ने विश्व पटल पर जो छाप छोड़ी है वो जर्मनी का फैलिक्स फिंग वेईनर ने 9 वर्ष की आयु में स्कूल पढाई के दौरान ही वृक्षारोपण कर अध्यापकों व माता-पिता का चहेता बन गया। उसने अपने जीवनकाल के दौरान लाखों वृक्ष अपने हाथों से लगाए तथा आज पर्यावरण क्षेत्र में जर्मनी का ब्रांड एम्बेसेडर बन गया है। यह बताना यहां इसलिए आवश्यक है कि एक नन्हा बच्चा पर्यावरण के बारे में कितनी गहरी सोच रखता है तो हम इस विषय में पिछे क्यों है? वर्तमान में फैलिक्स एक कंपनी में सीईओ के पद पर कार्यरत है। उनका मासिक वेतन 11 हजार यूरो है। इतना छोटा विदेशी अपने देश के लिए इतना कर सकता है तो क्या हम अपनी मातृ भूमि के श्रंृगार और हमारी उन्नती और जीवन के लिए एक वृक्ष नहीं लगा सकते। इसका साहस के उपर आधारित मेरी कुछ ही समय में प्रकाशित होने वाली पुस्तक ’’बुलन्द हौसले‘‘ (हम है कामियाब) में मैने इस छोटे से पर्यावरण प्रेमी का लेख लिखा। जो पढने जैसा है। तो हम फैलिक्स के पथ पर चलकर पर्यावरण में काम नहीं कर सकते क्या?

पाठकों वृक्ष तो व्यक्ति की जरूरत है, वृक्ष तो सतपुरूष की तरह होता है। एक संस्कृत के श्लोक के अनुसार

’’गच्छायामन्यस्य कुर्वन्ति तिष्ठन्ति स्व्यमातपे‘‘

’’फलान्यपि परार्थय वृक्षाः सत्पुरूषा इवं’’

अर्थ:- वृक्ष एक सत पुरूष की तरह होता है, जो अन्यों के लिए छाया देता है तथा स्वयं धुप में खडा रहता है और फल भी दूसरों को देता है।

पेड-पोधों की नैसर्गिक श्वसन क्रिया हमसे बिलकुल विपरीत है वे कार्बन डाई आक्साईड लेते है तथा ऑक्सिजन छेाडते है, पौधे अपनी जडों से नाईट्रोजन अवशोषित करके पोषित होते है। यह एक ईश्वरीय चमत्कार भी है कि एक ऑक्सिजन पर जीवित रहता है तो दूसरा कार्बन डाय ऑक्साइड पर। दोनो में जीवन है परन्तु जीवन के आधार अलग अलग है। यह प्राकृतिक संतुलन के लिए जरूरी भी है। अतः ईश्वरीय जैविक सृष्टि की संरचना भी स्वयं में एक बडा आश्चर्य है। मानव जीवन निर्वहन के लिए जीतनी ऑक्सीजन लेता है उसके बदले में वृक्ष लगाकर यदि उतनी ऑक्सीजन प्रकृति को वापस नहीं लोटाता तो परमात्मा उसको अगला जन्म वृक्ष का देते है। कि जाओं जितनी ऑक्सीजन ले चुके हो पेड बनकर उसको लौटाकर आओं।

पेड पौधो की श्वसन क्रिया के फलस्वरूप बादलों का निर्माण यर्थात सत्य है। इसी तर्ज पर वृक्ष नहीं तो मानसून नहीं, मानसून नहीं तो बारिश नहीं, बारिश नहीं तो हमारी उन्नति नहीं। उन्नति के लिए सार्वजनिक जलस्रोतों (जैसे हैण्डपंप, बोरिंग नल) के आसपास जहां पानी व्यर्थ बहता हो, वह स्थान वृक्षारोपण के लिए उत्तम होता है। हम इस वेस्ट पानी को पेड-पोधों के लिए उपयोगी बना सकते है। इस छोटे से प्रयास के बदौलत आपको पर्यावरण संरक्षण में अपनी भागीदारी भी सुनिश्चित करनी होगी। साथ ही प्रकृति के सौन्दर्य में आपका यह छोटा सा प्रयास सराहनीय साबित होगा।

-निसार युसुफजई, साहित्यकार व पर्यावरण प्रेमी

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