चरित्र-निर्माण के सुनहरे सूत्र
जय सियाराम सा,
वेदों में हमारे सिद्ध ऋषि-मुनियों ने जीवन को सफल बनाने के लिए बहुत सी बातें लिखी है जो हमारे जीवन का आधार है, इसलिये हमारे जीवन के लिए उपयोगी हैI जो हमारे व्यहवार एवं वाणी को दिव्य बनाने में सहायक सिद्ध होती हैI प्राणिक हीलिंग में भी चरित्र–निर्माण पर मास्टर चोआ कोक सुई ने भी सुंदर विवेचना की है-
1 हमारे द्वारा किया गया कर्म यह बताता है कि आत्मा और हमारे मध्य कितना घनिष्ठ सम्बन्ध है, यह सम्बन्ध असंतुलित होने पर जीव–आत्मा का जुडाव, उच्च-आत्मा से क्षीण होता जाता हैi उच्च आत्मा से एकाकार होने पर चरित्र निर्माण का अभ्यास सरल हो जाता हैI जब हम अपने भौंतिक शरीर से अपना तालमेल खत्म कर देते है तो इस प्रवृति से हमारा आध्यात्मिक विकास सक्रिय हो जाता है और चक्रों पर नियन्त्रण रखना हमारे लिए सरल हो जाता हैI
2 हमारा चरित्र ही हमारे आध्यात्मिक विकास का आईना होता हैI
3 कमजोर चरित्र (कुआचरण) आत्मा की कमजोरी को दर्शाता हैI हमे स्वयं चिन्तन करके यह निणर्य लेना होगा कि कौन ज्यादा मूल्यवान है और कौन गौण ? हमारा शरीर या आत्मा I
4 नैतिक मूल्य हमारे पथ–प्रदर्शन के लिए है, इसलिये इनका संतुलित विकास आवश्यक हैI
5 किसी एक नैतिक गुण का विकास अन्य सभी नैतिक गुणों पर निर्भर होता हैI
6 शरीर के चक्रो और नैतिक गुणों का आपस में गूढ़ सम्बन्ध होता हैI
7 किसी नैतिक गुण में हमारी कितनी निपुणता है, यह इस बात पर निर्भर है कि हमने कितना उस गुण को अपने जीवन में आत्मसात कर लिया हैI
8 हमारे अन्दर जितना अधिक नैतिक गुणों का विकास होगा, हमारा उतनी अधिक शीघ्रता पूर्वक ईश्वर से सम्बन्ध मजबूत होगा I
9 जब हमारे जीवन में नैतिकता का अभाव होता है तब जीवन में व्यापक रूप से अव्यवस्था हो जाती हैI
10 संयम ,शराफत ,चरित्र और सिदान्तो की कमी से जीवन में समस्याएं आती हैI इसलिये स्वयं को इन कमजोरियों या अवगुणों से मुक्त रखना चाहिये I
11 कुशल कार्यशैली के लिए हमारा सूर्य चक्र और सामाजिक कार्य कुशलता के लिए ह्र्दय चक्र का विकसित होना भी जरुरी है, दोनों ही हमारे लिए महत्वपूर्ण हैI क्योंकि हमे जीवन में प्रक्रति के नियमों के अनुसार ही संतुलन बनाये रखने की आवश्यकता हैI
12 हमारा जीवन संतुलित होना चाहिए और आध्यात्मिक विकास भी संतुलित होना चाहिएI
13 हमें सिद्धान्तो से समझौता कभी नहीं करना चाहिए ,संकट के समय कुछ लोगो का सिद्धान्तो पर अडिग रहना कठिन हो जाता है, जो चरित्र दोष का कारण बन जाता हैI
14 दूसरों पर दोषारोपण या कीचड़ उछालने से हमारी आत्मा भी दूषित होती हैI दोषों में भी ऊर्जा होती है,प्राणिक हीलर उन्हें विघटित या छिन्न-भिन्न कर सकता हैI
15 अहंकार,घमंड,चोरी,गलत आदतें एवं संगत ,अनियंत्रित भावनाएं,मूर्खतापूर्ण बातों को समर्थन देना भी बहुत भारी गलतियाँ हैI जो चरित्र निर्माण में बाधक हैI
16 अपरिपक्व आत्माओं का व्यवहार भी अपरिपक्व होता है, क्योंकि यह उनका स्वभाव बन जाता हैI
17 एक अच्छा या भला इन्सान पूरी तरह से अच्छा नही होता ,न ही एक बुरा इन्सान पूरी तरह से बुरा I (महाभारत में श्री क्रष्ण द्वारा कथन )
18 एक जन्म में पूर्ण निपुणता भी हासिल करना सम्भव नही हैI
19 गलत आदतों की लत, परत–दर-परत स्वभाव बन जाती है, जेसे प्याज की परत I इनको सत्संग ,ध्यान ,योग ,संयम आदि के द्वारा एक-एक करके तब तक हटते रहने का कार्य करते रहना चाहिए जब तक इनका स्थान अच्छी आदतें न ले लें।
जय सियाराम